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श्रद्धा और भक्ति का अद्वितीय प्रतीक- जगन्नाथ रथ यात्रा

विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा भगवान श्री जगन्नाथ अर्थात् विश्व का उद्धार करने वाले भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए मानो एक महापर्व ही है! केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व से भक्तगण इस यात्रा में सम्मिलित होते हैं। यह यात्रा श्रद्धा और भक्ति की गहराई का साक्षात दर्शन कराती है। पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र तीर्थों में से एक है। यह मंदिर 800 वर्षों से भी अधिक पुराना है और इसमें भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनके बड़े भाई श्री बलराम और बहन सुभद्रा देवी की भी पूजा होती है

श्रद्धा और भक्ति का अद्वितीय प्रतीक- जगन्नाथ रथ यात्रा

पुरी (ओडिशा) की विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा भगवान श्री जगन्नाथ अर्थात् विश्व का उद्धार करने वाले भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए मानो एक महापर्व ही है! केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व से भक्तगण इस यात्रा में सम्मिलित होते हैं। यह यात्रा श्रद्धा और भक्ति की गहराई का साक्षात दर्शन कराती है। पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र तीर्थों में से एक है। यह मंदिर 800 वर्षों से भी अधिक पुराना है और इसमें भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनके बड़े भाई श्री बलराम और बहन सुभद्रा देवी की भी पूजा होती है।
आइए इस रथयात्रा की कुछ विशेषताओं पर नजर डालते हैं

रथों की विशिष्ट व्यवस्था
रथयात्रा में सबसे आगे श्री बलराम का रथ, बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।
श्री बलराम का रथ-‘तालध्वज’, देवी सुभद्रा का रथ-‘दर्पदलन’ या ‘पद्मरथ’ तथा जगन्नाथ का रथ-‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’

तीनों रथों की अनूठी विशेषताएं
*1. रंग और नाम:
बलराम का रथ लाल – हरा रंग का,
सुभद्रा का रथ काला, नीला या लाल तथा जगन्नाथ का रथ लाल-पीला रंग का
*2. ऊंचाई*:
बलराम का रथ – 45 फीट, सुभद्रा का रथ – 44.6 फीट तथा जगन्नाथ का रथ – 45.6 फीट
*3. निर्माण*:
सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व लकड़ी से बनाए जाते हैं। एक विशेष समिति इस लकड़ी के चयन की जिम्मेदारी उठाती है। इन रथों के निर्माण में न तो कीलें और न ही किसी धातु का प्रयोग होता है।
*4. मुहूर्त*:
लकड़ी का चयन वसंत पंचमी को शुरू होता है और अक्षय तृतीया से रथों का निर्माण प्रारंभ होता है।
*5. ‘छर पहनरा’ अनुष्ठान*:
रथ निर्माण पूर्ण होने पर पुरी के गजपति राजा पालकी में आकर तीनों रथों का विधिवत पूजन करते हैं और सोने के झाड़ू से मंडप व मार्ग की सफाई करते हैं।
*6. यात्रा का प्रारंभ*:
रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को प्रारंभ होती है। इस वर्ष 27 जून को प्रारंभ होगी ।ढोल-नगाड़ों और शंखनाद के साथ भक्तगण रथ खींचते हैं। ऐसा माना जाता है कि रथ खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

*पुरी के जगन्नाथ मंदिर की अदभुत और रहस्यमयी विशेषताएं*: 1. वास्तुकला का अद्वितीय नमूना। 2. भारत के चार पवित्र धामों में से एक। 3. मंदिर की ऊँचाई 214 फीट और क्षेत्रफल 4 लाख वर्गफुट में फैला हुआ। 4. मंदिर के किसी भी कोने से उसके शिखर पर स्थित सुदर्शन चक्र को देखने पर ऐसा लगता है मानो वह सामने ही है। 5. मंदिर का ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। 6. सामान्यतः हवा समुद्र से धरती की ओर बहती है, पर पुरी में इसके विपरीत होता है। 7. मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय दिखाई नहीं देती। 8) मंदिर के ऊपर से पक्षी या विमान कभी उड़ते नहीं दिखते। 9. वर्ष भर के लिए पर्याप्त अन्न भंडार मंदिर में मौजूद रहता है और महाप्रसाद कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। 10. यहाँ का रसोईघर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक रसोईघर माना जाता है। माटी के बर्तनों में लकड़ी के चूल्हों पर प्रसाद पकता है। 11. यहाँ भगवान को पसंद आने वाला महाप्रसाद 500 रसोइये और उनके 300 सहायक एक साथ बनाते हैं।

*खिचड़ी का नैवेद्य पहले क्यों चढ़ाया जाता है?*
इसका कारण है, कर्माबाई की भक्ति और भगवान जगन्नाथ की करुणा!
कर्माबाई, एक गरीब, लेकिन अपार श्रद्धा से भरपूर भगवान जगन्नाथ की भक्त थी। उसके पास धन-दौलत नहीं थी लेकिन भगवान के लिए उसका प्रेम अनमोल था। वह प्रतिदिन सुबह अपने छोटे से घर में, सीमित साधनों में खिचड़ी बनाती और प्रेमपूर्वक भगवान जगन्नाथ को अर्पित करती। ऐसी मान्यता है कि भगवान स्वयं हर सुबह उसकी खिचड़ी ग्रहण करने उसके घर आते थे। यह सिलसिला वर्षों तक चलता रहा – एक सच्चे प्रेम और समर्पण का अद्भुत संवाद!
लेकिन एक दिन… वह सुबह कुछ अलग थी। कर्माबाई ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। जब भगवान जगन्नाथ उसके घर पहुँचे, तो उनका प्रिय भोग – स्नेहभरी खिचड़ी, वहां नहीं थी। उस क्षण भगवान की आँखों से आँसू छलक पड़े। उनकी करुणा से भरे नेत्रों को देखकर पुजारी चकित रह गए।उन्होंने भगवान से विनम्रता से पूछा – “प्रभु, यह कैसा विषाद?”
भगवान ने भारी मन से उत्तर दिया,
“कर्माबाई मुझे हर सुबह खिचड़ी खिलाती थी… अब मुझे वह प्रेम कहाँ मिलेगा? अब मुझे खिचड़ी कौन देगा?”
यह सुनकर पुजारियों की आंखें भी नम हो गईं। उन्होंने श्रद्धा से प्रण किया —
“प्रभु, अब हम आपको रोज़ वही खिचड़ी अर्पित करेंगे… उस स्नेह, उस भक्ति की स्मृति को हमेशा जीवित रखेंगे।”
तभी से जगन्नाथ भगवान को सबसे पहले खिचड़ी का नैवेद्य अर्पित किया जाने लगा — न केवल एक भोजन के रूप में, बल्कि एक भक्त के निश्छल प्रेम और परम भक्ति के प्रतीक रूप में!

संकलक :
श्रीमती बबीता गांगुली
सनातन संस्था

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