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बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे डॉ० रामसेवक ‘विकल’-सुनील कुमार दे

डॉ० विकल जी की पुण्यतिथि के अवसर पर उनके गृहग्राम में प्रायः कविसम्मेलन, साहित्यिक गोष्ठियां एवं अन्य सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। देश के विभिन्न साहित्यकारों को संस्था द्वारा डॉ० विकल जी की स्मृति में "विकल सम्मान" तथा "डॉ० रामसेवक विकल राष्ट्रीय कृति सम्मान" से समय समय पर सम्मानित किया जाता है। इन दोनों संस्थाओं के प्रबंधक विकल जी के ज्येष्ठ पुत्र डॉ. आदित्य कुमार अंशु  हैं। साहित्य सेवा में डॉ. विकल जी का अप्रतिम अवदान सभी साहित्य प्रेमियों के लिए सदा स्मरणीय रहेगा

बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे डॉ० रामसेवक ‘विकल’-सुनील कुमार दे

पोटका – डॉक्टर राम सेवक विकल पोटका,राजनगर और जमशेदपुर क्षेत्र के एक सम्मानीय और परिचित नाम है।वे केवल एक आदर्श शिक्षक की नहीं बल्कि एक महान साहित्यकार भी थे।मेरा उनके साथ परिचय हलुदपुकुर गिरी भारती हाई स्कूल में हुआ था सन 1971 में।मैं गिरि भारती के छात्र था विकल  हिंदी या संस्कृत का शिक्षक थे गिरि भारती में पढ़ते समय मेरा साहित्यिक गति विधि शुरू हो गई थी।बंगला में पूज्यनीय स्वर्गीय निरंजन मंडल से और हिंदी में डॉक्टर राम सेवक विकल  से मुझे लिखने की प्रेरणा मिली है इसलिए डॉक्टर राम सेवक विकल केवल मेरा शिक्षा गुरु ही नहीं बल्कि साहित्यिक गुरु भी थे।छोटानागपुर कॉलेज में जब विकल  प्रिंसिपल थे तब मैं सन 1975 में इंटरमीडिएट में पढ़ता था।विकल  के अंदर अगाध ज्ञान था।वे एक कुशल वक्ता भी थे तथा किसी भी विषय पर घंटे तक भाषण दे सकते थे।तुरंत कविता लिखने का भी उनकी क्षमता थी।मैं विकल  का प्रिय छात्र में से एक था इसलिए विकल जी मुझे काफी स्नेह और प्यार करते थे।हाता के माताजी आश्रम में भी उनका आना जाना था।मैं आश्रम के साथ छात्र जीवन से ही जुड़ा हुआ था और आश्रम का काम करते थे इसलिए विकल जी का प्यार मेरे ऊपर कुछ ज्यादा ही था।डॉक्टर राम सेवक विकल बहुमुखी प्रतिभा के धनवान व्यक्ति थे।मैं उनके जीवन के बारे में संक्षेप में कुछ बताना चाहता हूँ।

डॉ. रामसेवक ‘विकल’ का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के इसारी सलेमपुर गांव में 1 जुलाई सन 1939 में हुआ। स्कूली शिक्षा गांव से प्राप्त करने के बाद सन 1958 में सतीश चंद्र डिग्री कॉलेज बलिया से उन्होंने बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। बीए करने के बाद वे वकालत में दाखिला लिए परंतु परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वकालत की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। तत्पश्चात वे लौह नगरी जमशेदपुर में अपने बड़े भाई  रामकिंकर शर्मा के पास चले गए। कुछ समय पश्चात उन्होंने गिरि भारती स्कूल हल्दीपोखर,सिंहभूम (बिहार) जो वर्तमान में झारखंड में स्थित है, वहाँ हिंदी विषय में अध्यापक के पद पर कार्य करना शुरू किया। साथ ही साथ रांची विश्वविद्यालय से एम.ए. करके विश्वविद्यालय के ही विभागाध्यक्ष डॉ. जय नारायण मंडल के निर्देशन में “जयशंकर प्रसाद और द्विजेंद्र लाल राय के नाटकों का तुलनात्मक अध्ययन” विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
छोटी उम्र से ही साहित्य में रुचि होने के कारण ‘विकल’ उपनाम से साहित्य सेवा करने लगे। उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांगला, उड़िया और भोजपुरी में अपने साहित्य सेवा को आगे बढ़ाया। जिंदगी की तमाम परेशानी, उतार-चढ़ाव के बाद भी दिन-रात साहित्य सेवा में लगे हुए विकल जी कविता, कहानी, नाटक, आलोचना अनेक विधाओं में रचना करते रहे। अपने कुछ नाटकों का मंचन भी उन्होंने गिरि भारती स्कूल के ‘सुंदरम’ रंगमंच से सफलतापूर्वक कराया। गिरि भारती में नौकरी करते हुए विकल जी ने ‘छोटा नागपुर कॉलेज, हल्दीपोखर नाम से एक सांध्यकालीन महाविद्यालय की स्थापना की। जो आज भी हल्दीपोखर वासियों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। विकल जी के हिंदी रचनाओं में कर्मवीर, कमलाकांत, डूबे हुए भाई-बहन, जादूगर (नाटक),सर्वोदय सुमन, आशा किरण, फूल और कलियां (संपादित संस्कृत अनुवाद), मेरी साहित्य साधना के कई खंड अप्रकाशित रूप में हैं। श्रीमद्भागवत गीता का भोजपुरी में उन्होंने पद्य अनुवाद भी किया है जो प्रकाशित होकर लोगों के बीच में है। जिसकी भूमिका तत्कालीन शंकराचार्य ने लिखा था। वर्ष 2023 में इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण का प्रकाशन डॉ. विकल जी के ज्येष्ठ पुत्र डॉ. आदित्य कुमार अंशु जी ने कराया है।उस मंच पर अंशु जी ने मुझे साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए डॉक्टर राम सेवक विकल स्मृति पुरस्कार से सम्मानित किया।गुरू जी पुत्र के हाथों से यह सम्मान पाकर मेरी आँखें भर गई थी और अपने आप को धन्य मान रहा था।विकल जी के नव रत्न देव, गाईं गीत सुनाईं गीत, मन पाखी, गीतांजलि (रवींद्रनाथ टैगोर की गीतांजलि का पद्य अनुवाद), उघटा पुरान, जीवन के पथ पाहुर (काव्य संग्रह) आदि कई प्रकाशित और अप्रकाशित रचनाएँ हैं। इसके अतिरिक्त जगन्नाथ प्रभु महिमा जो हिंदी में है जिसका बाद में उड़िया में अनुवाद भी प्रकाशित है। 2025 में डॉ० रामसेवक विकल जी के पौत्र द्वारा संपादित एवं विकल जी द्वारा रचित भोजपुरी लोकगीतों के संकलन “आखर” का भी सद्य प्रकाशन हुआ है। डॉ० विकल न केवल साहित्यकार थे, बल्कि अनेक सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों में महती भूमिका निभाते थे। यहां तक कि उन्होंने स्वयं द्वारा लिखे और निर्देशित नाटकों के मंचन में अभिनय भी किया। “कमलाकांत” नाटक के मंचन में उन्होंने स्वयं कमलाकांत की मुख्य भूमिका कई बार निभाई। आचार्य विनोबा भावे जी के भूदान आंदोलन के दौरान डॉ० विकल जी उनसे जुड़े रहे।
डॉ० विकल जी के मरणोपरांत आज भी उनके ज्येष्ठ पुत्र डॉ० आदित्य कुमार ‘अंशु’ द्वारा विकल जी की विभिन्न रचनाएं देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं जैसे भोजपुरी माटी,विश्व कल्याण धारा,समकालीन अभिव्यक्ति,भोजपुरिया माटी,विश्व कर्मा सेवा संस्थान, साहित्य परिक्रमा तथा विभिन्न पुस्तकों जैसे भोजपुरी के श्रृंगार गीत, मधुरिमा,दोधारी तलवार, अंजुरी भर फूल आदि में प्रकाशित की जाती रहती है। डॉ० विकल का साहित्य अत्यंत विस्तृत है।
सन् 1999 में गिरि भारती से प्राचार्य पद से सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होकर कुछ दिन तक जमशेदपुर के बागबेड़ा कॉलोनी में ही रहे। वहीं रहकर वे साहित्य सेवा करते रहे और बाद में अपने गाँव इसारी सलेमपुर में आकर रहने लगे और साहित्य सेवा करने लगे। इसी बीच जगन्नाथ पुराण (चार भाग) पर तेजी से काम कर रहे थे और उसका गद्य रूप देकर पदानुवाद कर रहे थे। जगन्नाथ पुराण पर कुछ काम पूरा भी हो गया था। इसी के साथ-साथ “पुराण पुरुष” पर भी काम कर रहे थे, जिसमें महाभारत काल तक का काम पूरा हो चुका था। परंतु काल की गति कोई नहीं जानता। किसी को नहीं पता था कि जगन्नाथ पुराण और पुराण पुरुष का काम बीच में ही छोड़कर विकल जी इस दुनिया से अचानक चले जायेंगे। कई वर्षों से मधुमेह से पीड़ित घोर धार्मिक प्रवृत्ति के विकल जी 11 नवम्बर सन् 2002 को छठ पूजा के दिन ही छठ मैया का प्रसाद खाने के 2 घंटे बाद ही इस दुनिया को अलविदा कह गए। साहित्य सेवा में तन मन धन से लगे हुए सरस्वती के भक्त जीवन को खूब जीवटता के साथ जीने वाले डॉक्टर रामसेवक विकल कुसमय में भी हिम्मत नहीं हारने वाला सिपाही के समान कलम लेकर हरदम लड़ने वाला दूसरे लोक के वासी हो गया। आज भी डॉ. विकल के गृह ग्राम में दो साहित्यिक सामाजिक संस्थाएं इनके आदर्शों पर संचालित की जा रही हैं, डॉ. रामसेवक विकल साहित्य कला संगम संस्थान एवं पुस्तकालय, तथा डॉ. रामसेवक विकल साहित्य सेवा ट्रस्ट न्यास।
डॉ० विकल जी की पुण्यतिथि के अवसर पर उनके गृहग्राम में प्रायः कविसम्मेलन, साहित्यिक गोष्ठियां एवं अन्य सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। देश के विभिन्न साहित्यकारों को संस्था द्वारा डॉ० विकल जी की स्मृति में “विकल सम्मान” तथा “डॉ० रामसेवक विकल राष्ट्रीय कृति सम्मान” से समय समय पर सम्मानित किया जाता है। इन दोनों संस्थाओं के प्रबंधक विकल जी के ज्येष्ठ पुत्र डॉ. आदित्य कुमार अंशु  हैं। साहित्य सेवा में डॉ. विकल जी का अप्रतिम अवदान सभी साहित्य प्रेमियों के लिए सदा स्मरणीय रहेगा।

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