जमशेदपुर एमजीएम अस्पताल बना गरीबों की लाशों का सौदागर! बेटे से जबरन लिखवाया “शवदान”, दागी कर्मचारी की शर्मनाक करतूत उजागर
जनता और सामाजिक संगठनों की मांग है कि एमजीएम प्रशासन इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराए, दोषी कर्मचारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे और इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए कठोर दिशानिर्देश तय करे। गरीब और असहाय मरीजों की गरिमा से कोई खिलवाड़ न हो, यह सुनिश्चित करना प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए

जमशेदपुर एमजीएम अस्पताल बना गरीबों की लाशों का सौदागर! बेटे से जबरन लिखवाया “शवदान”, दागी कर्मचारी की शर्मनाक करतूत उजागर
जमशेदपुर- महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एमजीएम) एक बार फिर सवालों के घेरे में है। इस बार मामला न केवल लापरवाही का बल्कि अमानवीयता और गरीब मरीजों के साथ हुए अन्याय का है। सोनारी कुंज नगर की रहने वाली 65 वर्षीय विधवा रेखा रानी विश्वास की मौत 8 जुलाई को एमजीएम अस्पताल में हो गई थी। वह सांस की तकलीफ के कारण 6 जुलाई को भर्ती की गई थी उसी दिन उनका इकलौता बेटा दिवेंदु विश्वास, जो एनीमिया से पीड़ित था, भी अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती हुआ था। दोनों मां-बेटे को सोनारी काली मंदिर पूजा समिति की सहायता से अस्पताल में भर्ती कराया गया था
दिवेंदु विश्वास की स्थिति इतनी खराब थी कि उसके पास मां के अंतिम संस्कार तक के पैसे नहीं थे। जेब में मात्र पचास रुपये थे। उसने अस्पताल में मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई संस्था आगे नहीं आई। इसी दौरान एमजीएम अस्पताल के शवगृह में कार्यरत एक कर्मचारी शंकर उसके पास पहुंचा और अंतिम संस्कार कराने की बात कहकर एक आवेदन लिखवाया। दिवेंदु ने बताया कि शंकर ने उसे डिक्टेशन देकर कागज पर लिखवाया कि वह अपनी मां का शव अस्पताल को दान कर रहा है क्योंकि वह अंतिम संस्कार में सक्षम नहीं है।
जब यह मामला सामने आया, तो खुलासा हुआ कि आवेदन में “स्वेच्छा से शवदान” की बात लिखवाई गई थी, जबकि दिवेंदु को यह समझाया गया था कि यह सिर्फ अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के लिए जरूरी औपचारिकता है। मामले की जानकारी मिलने पर जब शवों का अंतिम संस्कार करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण शेट्टी अस्पताल पहुंचे, तो उन्हें बताया गया कि शव पहले ही “दान” किया जा चुका है।
इसके बाद कदमा के पूर्व सैनिक सुभाष बरुआ अपने साथियों के साथ अस्पताल पहुंचे और दबाव बनाया। काफी बहस और हस्तक्षेप के बाद कर्मचारी शंकर ने रेखा रानी का शव उसके बेटे को सौंपा, लेकिन वह काफी नाराज और आक्रोशित नजर आया
इस मामले से कई गंभीर सवाल उठते हैं:
बिना किसी विधिक प्रक्रिया और कॉलेज प्रशासन की अनुमति के एक दागी कर्मचारी कैसे शव अपने कब्जे में ले सकता है?
जब एमजीएम मेडिकल कॉलेज को शव की आवश्यकता नहीं है, तो यह दान का झूठा बहाना क्यों बनाया गया?
क्या एमजीएम अस्पताल में गरीब मरीजों के शवों का ऐसे ही दुरुपयोग हो रहा है?
लाश दान की प्रक्रिया के अनुसार, एमजीएम अस्पताल नहीं, बल्कि मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के पास आवेदन देकर और उनकी स्वीकृति के बाद ही शव दान की प्रक्रिया होती है। लेकिन यहां एक कर्मचारी द्वारा नियमों को ताक पर रखकर यह गंभीर अनियमितता की गई।
जनता और सामाजिक संगठनों की मांग है कि एमजीएम प्रशासन इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराए, दोषी कर्मचारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे और इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए कठोर दिशानिर्देश तय करे। गरीब और असहाय मरीजों की गरिमा से कोई खिलवाड़ न हो, यह सुनिश्चित करना प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।
जिला प्रशासन से भी अपील की जाती है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप कर अस्पतालों में शव प्रबंधन की प्रक्रिया पर निगरानी रखे, ताकि मानवता को शर्मसार करने वाले ऐसे कृत्य दोबारा न हो सकें।