मेडिएशन फॉर द नेशन अभियान के तहत स्पेशल मध्यस्थता ड्राइव को लेकर डालसा चलाया जागरूकता अभियान
नालसा एवं झालसा के निर्देश पर जिला विधिक सेवा प्राधिकार जमशेदपुर द्वारा मेडिएशन फॉर द नेशन अभियान के तहत 15 सितंबर से 19 सितंबर 2025 तक पांच दिनों का चलने वाले स्पेशल मध्यस्थता ड्राइव को लेकर डालसा के मोबाइल वैन के माध्यम से शहर के विभिन्न क्षेत्रों में गुरुवार को जागरूकता अभियान चलाया गया

मेडिएशन फॉर द नेशन अभियान के तहत स्पेशल मध्यस्थता ड्राइव को लेकर डालसा चलाया जागरूकता अभियान
जमशेदपुर – नालसा एवं झालसा के निर्देश पर जिला विधिक सेवा प्राधिकार जमशेदपुर द्वारा मेडिएशन फॉर द नेशन अभियान के तहत 15 सितंबर से 19 सितंबर 2025 तक पांच दिनों का चलने वाले स्पेशल मध्यस्थता ड्राइव को लेकर डालसा के मोबाइल वैन के माध्यम से शहर के विभिन्न क्षेत्रों में गुरुवार को जागरूकता अभियान चलाया गया इस दौरान डालसा टीम में शामिल पीएलवी नागेन्द्र कुमार, दिलीप जायसवाल एवं जोबा रानी बास्के ने लोगों को जानकारी देते हुए बताया कि आप डालसा के माध्यम से अपने विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटारा कर सकते हैं । पीएलवी द्वारा जागरूकता अभियान में मध्यस्थता और इसका उद्देश्य के बारे में बिन्दुसार विस्तार से बताया गया और जानकारी दिया गया कि मध्यस्थता स्वैच्छिक एवं पक्षकारों द्वारा की जाने वाली सुलह की प्रक्रिया है जिसमें कोई तीसरा निष्पक्ष व्यक्ति जिसे मध्यस्थ कहा जाता है विशेष वार्ता और सुलह की विधियों का प्रयोग करके पक्षकारों का विवाद सुलझाने में सहायता करता है। इसमें पक्षकार स्वयं यह तय करते हैं कि वे समझौता करना चाहते हैं या नहीं। समझौते की शर्तें भी वही तय करते हैं। यह निर्णय मध्यस्थ का नहीं होता। एक बार जब समझौते की शर्तों पर पक्षकारों और मध्यस्थ द्वारा सहमति और हस्ताक्षर हो जाते हैं
तो वह समझौता न्यायालय के आदेश की तरह बाध्यकारी और प्रवर्तनीय हो जाता है। मध्यस्थता साक्ष्य या प्रक्रिया के अदालती नियमों से बंधी नहीं होती। वार्ता गोपनीय, निष्पक्ष होती है एवं उसका प्रयोग अदालतों में नहीं किया जा सकता। यदि मध्यस्थता में समझौता नहीं होता है, तो पक्षकार पुनः अदालत में या पंच-निर्णय (आर्बिट्रेशन) हेतु जा सकते हैं।
मध्यस्थता क्यों कराएँ?
निश्चित समय सीमा में विवादों का जल्दी, आसान और बेहतर समाधान।
अदालतों अथवा पंच-निर्णय (आर्बिट्रशन) की तुलना में कम खर्च।
साक्ष्य अथवा प्रक्रिया के नियमों से मुक्त होने के कारण लचीला और अनौपचारिक।
मध्यस्थता की वार्ता को गोपनीय रखा जाता है।
मौजूदा रिश्तों में सुधार होता है।
ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों रूपों में उपलब्ध है।
स्वीकृत शर्तों में फेरबदल का अवसर प्राप्त होता है।
निष्पक्ष बातचीत का अवसर प्राप्त होता है।
पक्षकारों द्वारा स्वैच्छिक समझौता किया जा सकता है।
यदि मध्यस्थता में समझौता नहीं हो पाता है, तो वापस अदालत या पंच-निर्णय (आर्बिट्रेशन) हेतु जाने का अवसर प्राप्त है।
मध्यस्थता में हुआ समझौता डिक्री/पंचाट की तरह बाध्यकारी एवं प्रवर्तनीय है।
मुकदमे के बोझ से मुक्ति अतः सभी के लिए लाभप्रद है।
इसे अदालत और न्यायाधीशों का भी समर्थन प्राप्त है।
मध्यस्थता की प्रक्रिया के चरण :
चरण 1 : पक्षकारों के अनुरोध पर न्यायालय किसी मामले को मध्यस्थता हेतु भेज सकता है। प्रारंभ में मध्यस्थ व्यक्ति सभी पक्षकारों के साथ बैठक करता है और मध्यस्थता की प्रक्रिया समझाता है। वह बताता है कि यह प्रक्रिया स्वैच्छिक एवं गोपनीय है तथा समझौते की शर्तें भी वह (मध्यस्थ) स्वयं तैयार नहीं कर सकता। लेकिन एक बार जब शर्तें तय हो जाती हैं और दोनों पक्ष उस पर हस्ताक्षर कर देते हैं, तो वह कानूनी रूप से बाध्यकारी हो जाती है। इस चरण में पक्षकार अपने विवाद के कारणों को भी संक्षेप में बताते हैं।
चरण 2 : इसके बाद मध्यस्थ आम तौर पर प्रत्येक पक्ष से अलग-अलग मिलकर बातचीत करता है ताकि सीधे टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो। मध्यस्थ पक्षकारों की बातों को ध्यानपूर्वक सुनता है और उनकी वास्तविक इच्छाओं और समस्याओं को समझने की कोशिश करता है तथा समझौते के विकल्प तलाशता है। अलग-अलग बैठक करने से पक्षकारों की मान-प्रतिष्ठा भी बची रहती है क्योंकि शर्तें थोपी नहीं जाती, उसमें बदलाव करने का अवसर होता है
चरण 3 : मध्यस्थ एक पक्ष के विचार और प्रस्ताव दूसरे पक्ष तक पहुँचाता है। कठोर शब्दों को कोमल बनाता है और पक्षकारों को बीच का रास्ता चुनने में मार्गदर्शन करता है ताकि दोनों पक्षों के हित बचे रहें और उनके बीच का गतिरोध टल सके।
चरण 4 : जब दोनों पक्ष संतुष्ट हो जाते हैं तथा कानून के अनुरूप मौखिक समझौते पर पहुँच जाते हैं, तो मध्यस्थ उस समझौते को लिखित रूप देता है। इस पर सभी पक्षकार और मध्यस्थ हस्ताक्षर करते हैं। उसके बाद यह कानूनी रूप से बाध्यकारी और प्रवर्तनीय हो जाता है।
मध्यस्थता के लिए कौन जा सकता है
कोई भी व्यक्ति, कंपनी या समूह जो विवादों/संभावित विवादों से बचना चाहता है या उन्हें समाप्त करना चाहता है, वह मध्यस्थता के लिए जा सकता है। इसमें शामिल कुछ विवादों की सूची : —–
वाणिज्यिक विवाद ,उपभोक्ता विवाद ,
वैवाहिक या पारिवारिक विवाद ,अनुबंध आधारित कार्य और भुगतान से संबंधित विवाद , प्रसारण और दूरसंचार संबंधी विवाद , रोजगार या कार्यस्थल से जुड़े विवाद, चेक वापसी , किरायेदारी या संपत्ति विवाद , कुछ विशेष आपराधिक विवाद आदि ।
मध्यस्थता के लिए कहाँ संपर्क करें :
न्यायालय से संबद्ध मध्यस्थता केंद्र या सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकार या न्यायालय द्वारा निर्देशित किसी अन्य मध्यस्थता संस्था अथवा मध्यस्थ के पास
मुकदमें के लंबित रहने के दौरान किसी अदालत अथवा आर्बिट्रेटर के समक्ष मुकदमें के पक्षकार कभी भी मध्यस्थता के लिए राजी होने पर अदालत से प्रार्थना कर सकते हैं कि उनके मामले को मध्यस्थता के लिए न्यायालय से संबद्ध मध्यस्थता केंद्र, किसी अन्य मध्यस्थता संस्था अथवा प्रतिष्ठित मध्यस्थ के पास भेजा जाए।