रामकृष्ण कथामृत क्या है?सुनील कुमार दे
श्रीश्री रामकृष्ण कथामृत को इस युग का भागवत कहा जाता है जिसकी रचयिता महेंद्र गुप्त उर्फ श्रीम है।भागवत में भगवान की कथा है जिसकी रचयिता महामुनि वेदव्यास जी है रामकृष्ण देव् इस युग के अवतार अर्थात भगवान है इसका प्रमाण भागवत अनुसार भैरवी ब्राह्मणी ने एक समय दक्षिणेश्वर में एक पंडित की सभा बुलाकर की थी

रामकृष्ण कथामृत क्या है?सुनील कुमार दे
पोटका- श्रीश्री रामकृष्ण कथामृत को इस युग का भागवत कहा जाता है जिसकी रचयिता महेंद्र गुप्त उर्फ श्रीम है।भागवत में भगवान की कथा है जिसकी रचयिता महामुनि वेदव्यास जी है रामकृष्ण देव् इस युग के अवतार अर्थात भगवान है इसका प्रमाण भागवत अनुसार भैरवी ब्राह्मणी ने एक समय दक्षिणेश्वर में एक पंडित की सभा बुलाकर की थी उनकी जीवन गाथा और अमृतमय वाणी रामकृष्ण कथामृत में वर्णित है।इसलिए रामकृष्ण कथामृत को भागवत के साथ तुलना की गई है और महेंद्र गुप्त को इस युग का व्यासदेव् कहा गया है
महेंद्र गुप्त प्रकांड विद्यान व्यक्ति थे।ट्रीपल एम ए पास किये थे।ऐसा कोई शास्त्र नहीं था जो उन्होंने अध्ययन नहीं किया था।उन्होंने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के विद्यालय में प्रधान आचार्य के पद पर कार्यरत थे उनका संसार जीवन काफी अशांतिपूर्ण था इसलिए महेंद्र गुप्त एक दिन आत्मा हत्या करने का निर्णय भी लिया था। उसी वक्त उनके एक मित्र के कहने से एक दिन दक्षिणेश्वर में ठाकुर रामकृष्ण परमहंस के पास गए थे।उनका पहला साक्षात रामकृष्ण देव् के साथ 1882 साल के मार्च महीने में हुई थी।उसदिन ठाकुर जी की अमृत कथा सुनकर महेंद्र गुप्त भाव विभोर हो गए थे।आत्म हत्या करने की कथा भूल गए।उसदिन सामान्य परिचय हुआ था।ठाकुर जी फिर आने के लिए कहा।आना जाना शुरू हुआ।महेंद्र गुप्त ठाकुर जी के प्रेम में पड़ गए
इतना सुंदर आदमी,उतना सुंदर कथा,इतना सुंदर परिवेश।बहुत अच्छा लगा और जीवन बदलना शुरू हो गया।मन ही मन सोचने लगा यह अमृतमय वाणी और कथा लिखकर रखना चाहिए।महेंद्र गुप्त श्रुतिधर व्यक्ति थे,जो एकबार सुन लेते थे उनको याद हो जाता था।जिसदिन महेंद्र गुप्त रामकृष्ण देव् जी के पास जाते थे उसदिन की विवरण घर में जाकर अपनी डायरी में लिखकर रखते थे तिथि,समय,साल,परिवेश सारा चीज उल्लेख करते हुए।महेंद्र गुप्त 1882 से 1886 साल तक कुल 240 दिन गए थे ठाकुर जी के पास अर्थात रामकृष्ण कथामृत महेंद्र गुप्त की 240 दिन की डायरी है।रामकृष्ण देव् जी के देहांत के उपरांत महेंद्र गुप्त की डायरी कुल पांच खंडों में श्रीश्री रामकृष्ण कथामृत के नाम से प्रकाशित हुई स्वामी त्रिगुनातितानंद जी के द्वारा।पहला खंड 1902 में,दूसरा खंड 1904 में,तीसरा खंड 1908 में,चतुर्थ खंड 1910 में और पंचम खंड 1932 में महाराज जी के देहांत के बाद।रामकृष्ण कथामृत एक अनमोल धार्मिक ग्रंथ है जो सार्वजनिक है।रामकृष्ण कथामृत में सभी अवतार की कथा,सभी देवी देवताओं की कथा,सभी धर्म और धर्म ग्रंथ की कथा वर्णित है ठाकुर जी ने छोटी छोटी कहानी के माध्यम से धर्म की गंभीर और जटिल विषयों को अति सरल रूप से समझाया है।रामकृष्ण कथामृत खासकर गृही भक्तों के लिए एक पवित्र धार्मिक पुस्तक है जिसमें सारे समस्याओ का समाधान है।केवल यही नहीं रामकृष्ण मिशन के ज्यादातर संन्यासी कथामृत पाठ करके ही संन्यासी बने हैं।आज के समय रामकृष्ण कथामृत बहुत ही प्रासंगिक है