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कलियुग में राष्ट्र और आत्मोद्धार के लिए राष्ट्रगुरु की आवश्यकता गुरुपूर्णिमा विशेष लेख

आज का युग केवल तकनीकी या भौतिक प्रगति का नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व के संघर्ष का युग है। जब देश में धर्माचरण, साधना और गुरु-कृपा की स्मृति धूमिल होती जा रही है ऐसे समय में समाज को दिशा देने वाले राष्ट्रगुरुओं की अत्यधिक आवश्यकता महसूस हो रही है

कलियुग में राष्ट्र और आत्मोद्धार के लिए राष्ट्रगुरु की आवश्यकता गुरुपूर्णिमा विशेष लेख

आज का युग केवल तकनीकी या भौतिक प्रगति का नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व के संघर्ष का युग है। जब देश में धर्माचरण, साधना और गुरु-कृपा की स्मृति धूमिल होती जा रही है ऐसे समय में समाज को दिशा देने वाले राष्ट्रगुरुओं की अत्यधिक आवश्यकता महसूस हो रही है
भारतभूमि पर जब-जब संकट आया तब-तब आचार्य चाणक्य और समर्थ रामदासस्वामी जैसे गुरुओं ने समाज को जागृत किया, राष्ट्रभक्त शिष्य तैयार किए और विदेशी आक्रमणों के समय भारत के अस्तित्व को नवजीवन दिया। ऐसे समयोचित आध्यात्मिक मार्गदर्शन और राष्ट्रहित का विवेक रखने वाले गुरू ही भारत को फिर से वैभव के शिखर पर ले जा सकते हैं।

आज भी हिन्दू समाज को धर्मशिक्षा, साधना और राष्ट्रनिष्ठ गुरुओं के मार्गदर्शन की अत्यंत आवश्यकता है। 10 जुलाई को गुरुपूर्णिमा है — यह दिन गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन होता है। इस दिन गुरुतत्त्व विशेष रूप से सक्रिय रहता है, अतः सभी को इसका लाभ लेना चाहिए।
जीवन में साधना और गुरु का महत्व:
1. छत्रपति शिवाजी महाराज देवी भवानी के अनन्य भक्त थे। उनके मुख से सदैव ‘जगदंब जगदंब’ नामजप होता रहता। उनकी सेना भी युद्ध में ‘हर हर महादेव’ का घोष करती थी। सीमित संसाधन होने के बावजूद उन्होंने पाँच शक्तिशाली बादशाहों को परास्त कर ‘हिंदवी स्वराज्य’ की स्थापना की। यह उनकी साधना और संत तुकाराम व समर्थ रामदासस्वामी के आशीर्वाद का ही परिणाम था।
2. अर्जुन एक श्रेष्ठ धनुर्धर ही नहीं, श्रीकृष्ण का भक्त भी था। वह प्रत्येक बाण छोड़ने से पूर्व श्रीकृष्ण का नाम लेता था। उसी श्रद्धा और नामस्मरण से उसके बाण अचूक लक्ष्य भेदते थे।

राष्ट्र और धर्म रक्षा की शिक्षा देने वाले गुरु:
1. आर्य चाणक्य – तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य पद पर रहते हुए उन्होंने केवल विद्यादान नहीं किया, बल्कि चंद्रगुप्त जैसे अनेक शिष्यों को क्षात्रधर्म की दीक्षा देकर यूनानियों के आक्रमण को परास्त किया और अखंड भारत का निर्माण किया।
2. समर्थ रामदासस्वामी – प्रभु श्रीराम के साक्षात दर्शन प्राप्त इस संत ने केवल रामनाम में नहीं रमे, बल्कि समाज में बल-उपासना की चेतना जागृत करने हेतु हनुमान की अनेक मूर्तियाँ स्थापित कीं, और शिवाजी महाराज को प्रेरणा देकर ‘हिंदवी स्वराज्य’ की स्थापना करवाई।
3. स्वामी वरदानंद भारती और महायोगी गुरुदेव काटेस्वामीजी – अतीत के इन महान गुरुओं की लेखनी धर्म और अध्यात्म के साथ राष्ट्रधर्म के प्रति निःशब्द हिंदू समाज को जागृत करने हेतु चली। उनके आचार-विचारों ने शिष्यों और समाज को धर्म-राष्ट्र रक्षा की प्रेरणा दी।
समय की आवश्यकता को समझकर राष्ट्र और धर्म रक्षा की शिक्षा देना, यही आज के गुरु का प्रमुख कर्तव्य है।

गुरु का धर्म – ईश्वर प्राप्ति और राष्ट्र-जागरण दोनों:
जैसे गुरु का धर्म शिष्य को ईश्वरप्राप्ति का मार्ग दिखाना है, वैसे ही राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए समाज को जागृत करना भी गुरु का धर्म है। आर्य चाणक्य और समर्थ रामदास जैसे राष्ट्रगुरु हमारे सामने आदर्श हैं।
आज राष्ट्र और धर्म की स्थिति अत्यंत विकट और दुःखद है। इसलिए गुरु का यह प्राथमिक कर्तव्य है कि वे शिष्यों और समाज को साधना कराकर राष्ट्र और धर्म रक्षा की शिक्षा दें। हिन्दू धर्म में गुरु-शिष्य परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। इस परंपरा को अपनाकर हमें स्वयं और अपने राष्ट्र का उत्थान करना चाहिए।

*रामराज्य की स्थापना के लिए साधना और भक्ति आवश्यक:
भारतभूमि पर एक आदर्श सनातन राष्ट्र अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हमारा लक्ष्य है। इसके लिए प्रभु श्रीरामचंद्र का रामराज्य ही आदर्श है। उस समय की प्रजा धर्माचरणी थी, इसी कारण उसे श्रीराम जैसा सात्त्विक राजा मिला और रामराज्य का सुख मिला।
आज फिर यदि रामराज्य की स्थापना करनी है, तो हिन्दू समाज को धर्माचरणी और भक्तिपरायण बनना ही होगा। पहले के युग में अधिकांश लोग साधना करने वाले और धार्मिक थे, इसलिए समाज सात्त्विक था। आज कलियुग में अधिकांश लोगों को साधना और धर्माचरण का ज्ञान नहीं है; परिणामस्वरूप रज-तम का प्रभाव बढ़ गया है और राष्ट्र तथा धर्म की स्थिति गंभीर हो गई है। इसे बदलने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को धर्मशिक्षा लेनी होगी और साधना करनी होगी।

*हिन्दुओं के लिए धर्मशिक्षा की व्यवस्था आवश्यक:
यदि हिन्दू समाज को धर्माचरणी बनाना है, तो सबसे पहले हमें उसकी वर्तमान स्थिति को समझना होगा। अन्य धर्मों में प्रार्थनास्थलों पर उनके धार्मिक नेता (जैसे चर्च में पादरी, मस्जिद में मौलवी) धर्मशिक्षा देते हैं, जिससे ईसाई ‘बाइबल’ और मुस्लिम ‘कुरान’ से अवगत होते हैं।लेकिन हिन्दुओं को ‘गीता’ की जानकारी तक नहीं होती। गीता पढ़ने वाले कम हैं, समझने वाले और भी कम, और उस पर आचरण करने वाले तो करोड़ों में शायद एक। लगभग 80% लोगों को अध्यात्म की सही शिक्षा नहीं मिली है। अतः हमें हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देने वाली एक व्यवस्थित प्रणाली बनानी होगी।

*समय के अनुसार आवश्यक साधना:*
केवल व्यक्तिगत मोक्ष ही नहीं, बल्कि राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए शिष्य को तैयार करना भी गुरु का कर्तव्य है। जब राष्ट्र और समाज संकट में हो, तब उसका नेतृत्व करने वाले गुरुओं की आवश्यकता होती है। इतिहास साक्षी है कि आर्य चाणक्य और समर्थ रामदासस्वामी जैसे गुरुओं ने चरित्रवान शिष्य और जागरूक समाज तैयार कर भारत की रक्षा की आज पुनः उसी नीति और संकल्प की आवश्यकता है। संक्षेप में, गुरु का आज का मुख्य कर्तव्य है – समय की आवश्यकता को पहचान कर राष्ट्र और धर्म की रक्षा हेतु साधना की शिक्षा देना।
राष्ट्र और धर्म की रक्षा – यह केवल गुरु का ही कर्तव्य नहीं, बल्कि शिष्य और समाज की भी आवश्यक साधना है!

संकलनकर्ता
शंभू गवारे
पूर्व एवं पूर्वोत्तर भारत राज्य समन्वयक
हिन्दू जनजागृति समिति

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