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झारखंड आंदोलन के महत्वपूर्ण योद्धा स्वर्गीय लखी चरण कुंडू को लोग भूल गए इतिहास लिखने वाले लोग भी लखी बाबू को याद नहीं किया- सुनील कुमार दे

सन 2000 में अर्थात 15/11/2000 को बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर झारखंड राज्य का आत्म प्रकाश हुआ अर्थात बिहार का एक स्वाधीन खंड का नाम हुआ झारखंड श्री श्री चैतन्य चरितामृत में झारखंड का नाम झाड़ीखंड के रूप में उल्लेख है यहाँ के आदिवासी और मूलवासी के उत्थान के लिए और सर्वांगीण विकास के लिए इस राज्य का गठन हुआ।भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल विहारी वाजपेयी झारखंड राज्य का रूपकार हैं झारखंड राज्य को बनाने लिए आंदोलन भी करना पड़ा है।झारखंड आंदोलन में काफी लोगों का योगदान और भूमिका रही है जिनमें से बहुत लोगों का नाम हम जानते हैं और बहुत लोगों का नाम हम नहीं भी जानते हैं।जिनलोगों का नाम हम नहीं जानते हैं उन में से एक छिपी हुई रुस्तम का नाम है स्वर्गीय लखी चरण कुंडू झारखंड आंदोलन में सबसे ज्यादा नाम लिया जाता है शिबू सोरेन और स्वर्गीय निर्मल महतो का लेकिन उनलोगों के साथ हमें और एक लोग का नाम लेना चाहिए जो झारखंड आंदोलन का एक महत्वपूर्ण योद्धा थे वह है लखी चरण कुंडू जो शिबू सोरेन और निर्मल महतो दोनों के करीबी और प्रिय थे

झारखंड आंदोलन के महत्वपूर्ण योद्धा स्वर्गीय लखी चरण कुंडू को लोग भूल गए इतिहास लिखने वाले लोग भी लखी बाबू को याद नहीं किया- सुनील कुमार दे

सन 2000 में अर्थात 15/11/2000 को बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर झारखंड राज्य का आत्म प्रकाश हुआ अर्थात बिहार का एक स्वाधीन खंड का नाम हुआ झारखंड श्री श्री चैतन्य चरितामृत में झारखंड का नाम झाड़ीखंड के रूप में उल्लेख है यहाँ के आदिवासी और मूलवासी के उत्थान के लिए और सर्वांगीण विकास के लिए इस राज्य का गठन हुआ।भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल विहारी वाजपेयी झारखंड राज्य का रूपकार हैं झारखंड राज्य को बनाने लिए आंदोलन भी करना पड़ा है।झारखंड आंदोलन में काफी लोगों का योगदान और भूमिका रही है जिनमें से बहुत लोगों का नाम हम जानते हैं और बहुत लोगों का नाम हम नहीं भी जानते हैं।जिनलोगों का नाम हम नहीं जानते हैं उन में से एक छिपी हुई रुस्तम का नाम है स्वर्गीय लखी चरण कुंडू झारखंड आंदोलन में सबसे ज्यादा नाम लिया जाता है शिबू सोरेन और स्वर्गीय निर्मल महतो का लेकिन उनलोगों के साथ हमें और एक लोग का नाम लेना चाहिए जो झारखंड आंदोलन का एक महत्वपूर्ण योद्धा थे वह है लखी चरण कुंडू जो शिबू सोरेन और निर्मल महतो दोनों के करीबी और प्रिय थे।
लखी चरण कुंडू मुख्य रूप से एक समाज सेवी और राजनेता थे।लखी बाबू झारखंड आंदोलन के छिपे रुस्तम थे जो चुपचाप काम करते थे।वे एक अप्रचारित गुप्त आंदोलन कारी थे जिसके साथ सभी झारखंड आन्दोलनकारियों के साथ संबंध था।लखी चरण कुंडू पूर्वी सिंहभूम जिले के अंतर्गत पोटका प्रखंड में स्थित गंगाडीह गांव के निवासी थे जिसका देहांत बिगत 2/9/2021 को एक गंभीर बीमारी से हो गया है।
छात्र जीवन मे एक साहसी और जुझारू नेता थे।अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना उनका चारित्रिक गुण था।युवा अवस्था में लखी बाबू वामपंथी विचार धारा के व्यक्ति थे।इसलिए पहले जीवन में सामाजिक रीति रिवाज को भी नहीं मानते थे।लोग उनको नास्तिक कहते थे।बाद में स्वामी विवेकानंद और नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जीवनी और आदर्श से प्रभावित होकर रास्ता बदले और समाज सेवा तथा झारखंड आंदोलन में कूद पड़े।डॉक्टर शंकर शर्मा,दुलाल मुखर्जी, तपन पालित,बबलू चौधरी आदि उनके सहयोगी मित्र थे।लखी बाबू का घर झारखंड आंदोलनकारियों का एक केंद्र स्थल था,एक मिलन भूमि था।झारखंड आंदोलनकारी के बड़े बड़े नेताओं के साथ लखी बाबू का योगसूत्र और गहरा संबंध था।लखी बाबू का घर में ही आंदोलन की रूप रेखा तैयार की जाती थी।स्वर्गीय निर्मल महतो जिसको हमलोग झारखंड के मसीहा कहते हैं वे लखी बाबू का सबसे करीबी दोस्त थे जो महीने महीने तक लखी बाबू के घर में रहते थे।उनकी सारे खर्च लखी बाबू उठाते थे।कृष्णा मार्डी, शैलेन्द्र महतो,सूर्य सिंह बेसरा,शिबू सोरेन,अर्जुन मुंडा,सुनील महतो,सुधीर महतो आदि झारखंड के दिग्गज नेताओं का लखी बाबू के घर में आना जाना था।लखी बाबू के घर में बैठक होती थी और आंदोलन की रूप रेखा तैयार की जाती थी।
बहुत आंदोलन के बाद आज झारखंड बना लेकिन झारखंड आंदोलन में सबसे ज्यादा जिसका योगदान रहा उस लखी बाबू को लोग आज भूल गए।झारखंड आंदोलन के इतिहास लिखनेवाले लोग भी पुस्तक में जगह नहीं दिया।झारखंड आंदोलन में कहीं लखी बाबू का नाम देखने को नहीं मिलता है न आज कोई राज नेता लखी बाबू का नाम अपना भाषण में कभी लेते है जो बहुत ही शर्म और दुःख की बात है।कहावत है पेड़ कोई लगाता है और फल कोई खाता है।भारत की आजादी की लड़ाई में भी ऐसा ही देखा जाता है जो लोग देश के आजादी के लिए चुपचाप प्राण दिया,खून दिया,त्याग और बलिदान दिया उन सभी को हम जानते नहीं है, उन सभी का इतिहास में नाम नहीं है।
अंत में कहेंगे लखी बाबू एक अजनवी झारखंड आंदोलन के नायक थे,निर्भीक योद्धा थे और निःस्वार्थ समाजसेवी थे झारखंड में जिनका सम्मान होना चाहिए और इतिहास के पन्ने में उनको जगह देना चाहिए।आनेवाले उनकी पुण्य तिथि के शुभ अबसर पर झारखंड सरकार से मेरा येही आवेदन और निवेदन है।

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