जीएसटी ने पूरे किए आठ वर्ष उपलब्धियों के साथ समस्याएं भी बरकरार
एक राष्ट्र, एक कर की दिशा में बढ़ा देश, लेकिन सुधारों की ज़रूरत अभी भी बाकी

जीएसटी ने पूरे किए आठ वर्ष उपलब्धियों के साथ समस्याएं भी बरकरार
जमशेदपुर – एक राष्ट्र, एक कर की दिशा में बढ़ा देश, लेकिन सुधारों की ज़रूरत अभी भी बाकी
देश में लागू वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली ने आज अपने 8 वर्ष पूरे कर लिए हैं। 1 जुलाई 2017 को शुरू हुई यह व्यवस्था भारत में अब तक का सबसे बड़ा कर सुधार मानी जाती है। हालांकि जहां एक ओर इससे व्यापार में सुविधा और कर संग्रहण में पारदर्शिता आई, वहीं दूसरी ओर व्यापारी वर्ग और कर विशेषज्ञ कई अनसुलझी समस्याओं को लेकर चिंतित हैं।
प्रमुख उपलब्धियाँ
जीएसटी ने पहले की बहुस्तरीय कर प्रणाली को हटाकर पूरे देश में एक समान कर दर लागू की ऑनलाइन रिटर्न फाइलिंग, ई-इनवॉइस, और आईटी-सक्षम निगरानी ने पारदर्शिता और कर अनुपालन को बढ़ावा दिया। मार्च 2024 में ₹1.87 लाख करोड़ का GST संग्रहण इस प्रणाली की व्यापक स्वीकार्यता को दर्शाता है
जमीनी स्तर की चुनौतियाँ
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हालांकि की व्यवहारिक जटिलताओं ने व्यापारियों, कर सलाहकारों और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के सामने कई परेशानियां खड़ी की हैं:
🔴 समयबद्ध मामलों में नोटिस जारी होना
कई मामलों में कर विभाग द्वारा ऐसे नोटिस भेजे जा रहे हैं जो समयसीमा (Limitation Period) के बाहर हैं। इससे करदाता न केवल अनावश्यक विवादों में फँस रहे हैं, बल्कि न्यायिक प्रक्रियाओं पर भी बोझ बढ़ रहा है।
🔴 जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण (Tribunal) का अभाव
जीएसटी लागू हुए आठ वर्ष बीतने के बावजूद अब तक पूर्ण रूप से कार्यशील जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना नहीं हो सकी है। इससे असहमति के मामलों में करदाता को हाईकोर्ट का रुख करना पड़ता है, जिससे समय और धन दोनों की बर्बादी होती है।
🔴 पुनरीक्षण की सीमाएँ
वर्तमान जीएसटी कानून के अंतर्गत यदि किसी करदाता की अपील खारिज हो जाती है तो वह कमिश्नर के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर नहीं कर सकता। यह व्यवस्था करदाताओं के लिए न्याय प्राप्ति के मार्ग को सीमित कर देती है।
🔴 इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की समस्याएँ
आईटीसी प्रणाली अब भी अत्यधिक जटिल और जोखिमपूर्ण है। यदि किसी सप्लायर ने कर का भुगतान नहीं किया, तो खरीदार को क्रेडिट रद्द कर दिया जाता है—जो न्यायसंगत नहीं माना जा रहा
🔴 अक्सर बदलते नियम
जीएसटी नियमों में लगातार बदलाव से व्यापारियों को अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। कई सूक्ष्म एवं लघु उद्योग (MSMEs) नियमन में अद्यतन न रह पाने के कारण भारी जुर्माने झेल रहे हैं।
सुधार की आवश्यकता
जीएसटी परिषद द्वारा अब तक कई सकारात्मक निर्णय लिए गए हैं, जैसे दरों का युक्तिकरण और डिजिटल निगरानी को सशक्त बनाना। किंतु विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायिक सुधार, अपील व्यवस्था की मजबूती, और प्रशासनिक जवाबदेही को प्राथमिकता देना अब आवश्यक है।
निष्कर्ष
जीएसटी प्रणाली ने भारत की कर व्यवस्था को आधुनिक स्वरूप देने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। लेकिन 8 साल बाद भी इसकी पूरी सफलता न्यायिक ढांचे और व्यावहारिक सरलता पर निर्भर करती है। यदि इन संरचनात्मक समस्याओं को दूर किया जाए, तो जीएसटी सच में “गुड एंड सिम्पल टैक्स” बन सकता है।
संकलनकर्ता
पीयूष चौधरी अधिवक्ता
जीएसटी एक्सपर्ट एंव कर सलाहकार