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गर्व से अपनी मातृभाषा सीखे और बोले सब कोई- सुनील कुमार दे

मातृभाषा अर्थात अपनी माँ की भाषा जो हम अपने घर में माँ से सीखते हैं इसलिए माँ हमारा पहला गुरु है घर हमारा प्रथम पाठशाला है।मातृभाषा मातृ दुग्ध समान है जिसका कोई विकल्प नहीं है।इसलिए हर व्यक्ति को शर्म से नहीं गर्व से मातृभाषा सीखना चाहिए और मातृभाषा में बात करनी चाहिए मातृभाषा हमारा परिचय है मातृभाषा हमारा पहचान है, मातृभाषा हमारा अस्तित्व है

गर्व से अपनी मातृभाषा सीखे और बोले सब कोई-
सुनील कुमार दे

पोटका- मातृभाषा अर्थात अपनी माँ की भाषा जो हम अपने घर में माँ से सीखते हैं इसलिए माँ हमारा पहला गुरु है घर हमारा प्रथम पाठशाला है।मातृभाषा मातृ दुग्ध समान है जिसका कोई विकल्प नहीं है।इसलिए हर व्यक्ति को शर्म से नहीं गर्व से मातृभाषा सीखना चाहिए और मातृभाषा में बात करनी चाहिए मातृभाषा हमारा परिचय है मातृभाषा हमारा पहचान है मातृभाषा हमारा अस्तित्व है अगर जीवन से मातृभाषा खत्म हो जाय तो हमारा पहचान और अस्तित्व खत्म हो जायेगी।जीवन में पैसा और कैरियर ही सब कुछ नहीं है इसलिए जो लोग कहते हैं आज के समय में मातृभाषा सीखने से क्या फायदा है वे आदमी अपनी माँ को नकारता है।आज की अंग्रेजी शिक्षा के होड़ में आकर हम लोग अपनी मातृभाषा को भूल रहे हैं और छोड़ रहे हैं।हमारी धारणा बन गई है कि मातृभाषा में पढ़ने से न हम आगे बढ़ सकते हैं, न कैरियर बन सकती है, न नोकरी मिल सकती है, न ही मान सम्मान मिल सकता है।यह हमारी गलत मानसिकता है।मै न अंग्रेजी का न ही हिन्दी का विरोध कर रहा हूँ।अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा है इसलिए सीखना जरूरी है।हिन्दी हमारा देश का राजभाषा है, पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ने की भाषा है इसलिए हिन्दी सीखना अनिवार्य है लेकिन इसके लिए अपनी माँ समान अपनी मातृभाषा को भूल जायेंगे, छोड़ देंगे यह स्वीकार्य नहीं है।हिन्दी और अंग्रेजी सीखना जितना जरूरी है उसी प्रकार अपनी मातृभाषा को सीखना भी उतनी जरूरी है।मातृभाषा अपना अभिमान है, अलंकार है, परिचय है।
हमारे समय में त्रिभाषी शिक्षा का प्रचलन था।एक मातृभाषा जैसे बंगला,उड़िया, उर्दू आदि।दूसरा राजभाषा अर्थात हिंदी और तीसरा अंतरराष्ट्रीय भाषा अर्थात अंग्रेजी।अतिरिक्त भाषा के रूप में संस्कृत भी था।हमलोग बंगला मीडियम स्कूल में पढ़कर बंगला सीखे है, हिंदी सीखे है अंग्रेजी सीखे है और संस्कृत सीखे है। कैरियर भी बनी थी और नोकरी भी मिली थी।जीवन में मान, सम्मान, प्रतिष्ठा सब कुछ मिला है।बंगला मीडियम में पढ़कर लोग डॉक्टर, इंजीनियर,बैगानिक,आईएएस अफसर,कवि,लेखक शिक्षक आदि सब कुछ बना है।अगर किसी के पास मेधा है, अगर कोई परिश्रम करना चाहेगा तो उसको आगे बढ़ने में कोई नहीं रोक सकता है,मातृभाषा कोई बाधक नहीं है।रासिया,चीन,जापान,जर्मन आदि देश अपनी मातृभाषा को लेकर कैसे आगे बढ़ रहा है।
इसलिए मैं राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों से निवेदन करना चाहेंगे की अगर आप राज्य में और देश में स्थानीय भाषाओं को जीवित रखना चाहते हैं तो राज्य और देश में फिर से सरकारी स्कूलो में भी और वेसरकारी स्कूलों में भी त्रिभाषी शिक्षा का प्रचलन करें और मातृभाषा में शिक्षा को अनिवार्य करें।क्यों कि मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं है मातृभाषा का स्थान दूसरा कोई भी भाषा नहीं ले सकती है।

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