सरकारी अव्यवस्था के कारण झारखंड के गांव और शहर में बंगला भाषा को बचाने के लिए निजी स्तर से अपुर पाठशाला खोला जा रहा है अभी तक कुल 29 अपुर पाठशाला खोला गया
बच्चे,युवा, माताएं और बहनें भी बंगला सीखने के लिए आगे आ रहे हैं

सरकारी अव्यवस्था के कारण झारखंड के गांव और शहर में बंगला भाषा को बचाने के लिए निजी स्तर से अपुर पाठशाला खोला जा रहा है अभी तक कुल 29 अपुर पाठशाला खोला गया
बच्चे,युवा, माताएं और बहनें भी बंगला सीखने के लिए आगे आ रहे हैं
पोटका – झारखंड निसंदेह बंगला भाषा भाषी बहुल राज्य है जहां 24 जिले में से ज्यादातर जिले में बंगला भाषा भाषी निवास करते हैं जिनकी मातृभाषा बंगला है उन में से रांची,पूर्व सिंहभूम, सरायकेला ,दुमका जामताड़ा,साहेबगंज,पाकुड़,बोकारो,धनबाद आदि प्रमुख है
लेकिन दुःख की बात यह है की झारखंड बनने के पहले से ही अर्थात 30 साल से ऊपर बंगला पुस्तक की छपाई और बंगला शिक्षकों की अभाव से राज्य में बंगला पढ़ाई बंद हो गई तथा धीरे धीरे सारे बंगला मीडियम विद्यालय हिंदी मीडियम में परिवर्तित हो गया।
किसी भी व्यक्ति का मातृभाषा छीन लेना कानूनी अपराध है।संविधान में भी निहित है कि प्राइमरी शिक्षा मातृभाषा में देना है।लेकिन यह नियम राज्य में अभी पालन नहीं हो रहा है।इसलिए बंग समाज निराश होकर निजी स्तर से अपने भावी पीढ़ी को अपनी मातृभाषा बंगला की शिक्षा देने के लिए झारखंड के विभिन्न गांव और शहर में अपुर पाठशाला नाम से स्कूल खोल रहे हैं
और बच्चे को निःशुल्क बंगला भाषा की शिक्षा दे रहे हैं।झारखंड में विभिन्न संस्था,संगठन, आश्रम, समिति,क्लब आदि की ओर से अभी तक कुल 29 अपुर पाठशाला खोला गया है उनमें से घाटशिला, पोटका, पटमदा,आदित्यपुर, गोविंदपुर,राजनगर आदि क्षेत्र शामिल है।
खुशी की बात यह है की 29 अपुर पाठशालाओं में से 19 पाठशालाएं माताजी आश्रम हाता की प्रयास से केवल पोटका और राजनगर प्रखंड में खोला गया है जिसमें विभिन्न गांव के अलावे बेसरकारी शिक्षा प्रतिष्ठान,क्लब,समिति,आश्रम,कोचिंग सेंटर आदि शामिल हैं।
अपनी मातृभाषा बंगला सीखने के लिए बच्चे,महिलाएं,युवा आदि सभी स्तर के लोग उत्साह के साथ आगे आ रहे हैं।यह उत्साह और उमंग देखकर उन लोगो को सीख लेना चाहिए जो लोग कहते हैं पहले बच्चे दीजिए उसके बाद बंगला किताब और शिक्षक देंगे।सच तो यह है कि सही व्यवस्था से ही सही समाज का निर्माण होता है उक्त जानकारी सुनील कुमार दे साहित्यकार,समाजसेवक तथा बंगला भाषा के प्रचारक ने दी है