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मस्ती की पाठशाला जमशेदपुर के 47 बच्चों ने मैट्रिक परीक्षा में 100% उत्तीर्णता दर के साथ एक और कीर्तिमान बनाया

27 मई 2025 को झारखंड एकेडमिक काउंसिल की कक्षा 10वीं (मैट्रिक) परीक्षा के परिणाम घोषित किए गए, जिसमें मस्ती की पाठशाला के 47 छात्रों ने शानदार सफलता प्राप्त की। इन 47 छात्रों में से 55 प्रतिशत छात्राएं थीं, और सभी विद्यार्थी पहले पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं — यानी अपने परिवार में औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले सदस्य इनमें से 22 छात्रों ने प्रथम श्रेणी, 20 ने द्वितीय श्रेणी और 5 छात्रों ने तृतीय श्रेणी प्राप्त की

मस्ती की पाठशाला जमशेदपुर के 47 बच्चों ने मैट्रिक परीक्षा में 100% उत्तीर्णता दर के साथ एक और कीर्तिमान बनाया

जमशेदपुर-  27 मई 2025 को झारखंड एकेडमिक काउंसिल की कक्षा 10वीं (मैट्रिक) परीक्षा के परिणाम घोषित किए गए, जिसमें मस्ती की पाठशाला के 47 छात्रों ने शानदार सफलता प्राप्त की। इन 47 छात्रों में से 55 प्रतिशत छात्राएं थीं, और सभी विद्यार्थी पहले पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं — यानी अपने परिवार में औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले सदस्य इनमें से 22 छात्रों ने प्रथम श्रेणी, 20 ने द्वितीय श्रेणी और 5 छात्रों ने तृतीय श्रेणी प्राप्त की, जिससे कुल 100 प्रतिशत उत्तीर्णता दर दर्ज हुई। प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाले 22 छात्रों में से 13 छात्राएं हैं, जो यह दर्शाता है कि समय बदल रहा है और अब लड़कियों को भी शिक्षा के क्षेत्र में समान अवसर और प्रोत्साहन मिल रहा है।

पिछले वर्ष, मस्ती की पाठशाला ने अपनी पहली बैच के आठ छात्रों को मैट्रिक परीक्षा में सफल होते देखा — यह उस कार्यक्रम की एक बड़ी उपलब्धि थी जिसे एक दशक पहले शुरू किया गया था। आज इन छात्रों में से कुछ ने टमर स्थित औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) से अपना कोर्स पूरा कर लिया है और उन्हें पहली नौकरी का प्रस्ताव भी मिल चुका है, जबकि बाकी छात्र उच्च शिक्षा की राह पर अग्रसर हैं।

मस्ती की पाठशाला, टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा वर्ष 2014 में शुरू की गई एक विशेष पहल है, जिसका उद्देश्य उन बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ना है जो कभी जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियों में बाल श्रम से गुज़र रहे थे। यह कार्यक्रम नियमित काउंसलिंग के माध्यम से बच्चों को यह समझाने में मदद करता है कि शिक्षा ही वह साधन है जिससे वे न केवल आत्मनिर्भर बन सकते हैं, बल्कि अपने परिवारों को भी पीढ़ियों से चली आ रही गरीबी के चक्र से बाहर निकाल सकते हैं।

जब बच्चे पूरी तरह से आश्वस्त हो जाते हैं और शिक्षा अपनाने का निर्णय लेते हैं, तो उन्हें दो विकल्प दिए जाते हैं — पहला, आवासीय ब्रिज कोर्स जिसमें छात्रावास जैसी व्यवस्था होती है और जहाँ शिक्षक, मार्गदर्शक और परामर्शदाता हमेशा उनकी मदद के लिए उपलब्ध रहते हैं। दूसरा विकल्प है गैर-आवासीय ब्रिज कोर्स, जो उन बच्चों के लिए है जिनके पास सुरक्षित घर होता है। वे दिन में कक्षाएं अटेंड करते हैं और शाम को घर लौट जाते हैं। इस विकल्प में भी नियमित काउंसलिंग और मार्गदर्शन सुनिश्चित किया जाता है ताकि बच्चों का आत्मविश्वास बना रहे और वे पढ़ाई में लगातार आगे बढ़ सकें।

इस उल्लेखनीय उपलब्धि के पीछे एक महत्वपूर्ण योगदान उन समर्पित शिक्षकों का भी है, जिन्होंने न जाने कितनी बार सार्वजनिक स्थलों, सड़कों और झुग्गियों में जाकर इन बच्चों की पहचान की। उन्होंने न सिर्फ उन्हें शिक्षा के महत्व को समझाया, बल्कि बार-बार समझा कर, हौसला देकर, और जीवन में कुछ कर दिखाने का सपना दिखाकर उनमें आत्मविश्वास जगाया। वे हर रोज़ इन बच्चों की शरारतों और चुनौतियों का सामना करते रहे, बिना थके, बिना रुके—जब तक सब कुछ धीरे-धीरे सामान्य नहीं हो गया।

भावुक लहजे में मस्ती की पाठशाला से शुरुआत से जुड़ी शिक्षिका साबित्री मुर्मू ने कहा, “इस मुकाम तक बच्चों को पहुंचाने में बहुत धैर्य, समझदारी और लगातार काउंसलिंग की जरूरत पड़ी। इन सभी बच्चों में अद्भुत प्रतिभा और बुद्धिमत्ता है, लेकिन पहले वे अपनी ऊर्जा गलत दिशाओं में लगा देते थे। कई बार तो वे छात्रावास से भागने की कोशिश करते थे, जबकि हमारे पास उनके माता-पिता की लिखित अनुमति होती थी। उन्होंने शिक्षकों को डराने या अफरातफरी मचाने के लिए ऐसे-ऐसे अनोखे तरीके अपनाए कि आज भी याद कर हँसी आ जाती है। लेकिन आज जब मैं उन्हें इस रूप में देखती हूं—संभले हुए, अपने सपनों की नई दिशा में बढ़ते हुए—तो लगता है कि हमारी सारी मेहनत रंग लाई है।”
हँसते हुए अंदाज़ में पार्थ (बदला हुआ नाम) ने कहा, “घर में बहुत सारी परेशानियाँ थीं और माहौल काफी नकारात्मक था। उस माहौल में पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना बहुत मुश्किल हो गया था, और मैं प्री-बोर्ड परीक्षाओं में लगभग फेल ही हो गया था। मैंने पूरी तरह से निराश हो गया था और मन से हार मान चुका था। लेकिन फिर शिक्षकों ने मुझे हिम्मत दी, लगातार समझाया और मेरी पढ़ाई के प्रति रुचि को फिर से जगा दिया। मैंने खुद को घरेलू तनाव से दूर रखने के लिए पढ़ाई में पूरी ताकत लगा दी — दिन भर रिवीजन करता था और नमूना प्रश्न हल करता था। आख़िरकार, जब परीक्षा में अच्छा किया, तो दिल से एक राहत महसूस हुई — लगा कि मैं अपने सपनों के थोड़ा और करीब आ गया हूँ। एक दिन मैं माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना चाहता हूँ। पर्वतारोहण मेरा जुनून रहा है — यह मुझे कठिन परिस्थितियों में भी केंद्रित रहने की ताक़त देता है।”

आवासीय ब्रिज कोर्स (आरबीसी) केंद्रों की स्थापना न्यायपूर्ण संचालन के सिद्धांत पर की गई थी। यहाँ शिक्षकों ने छात्रों के साथ मिलकर एक तरह की ‘छात्र संसद’ बनाई, ताकि उनमें जिम्मेदारी और जवाबदेही की भावना विकसित हो सके। हर छात्र को कोई न कोई महत्वपूर्ण पद सौंपा गया — जैसे खाद्य मंत्री, सुरक्षा मंत्री आदि — ताकि वे केंद्रों का प्रबंधन एक छोटे राज्य की तरह खुद करें।यह पहल शुरुआत में नेतृत्व कौशल को विकसित करने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन धीरे-धीरे यह एक अनुशासित दिनचर्या में बदल गई, जिसने छात्रों को न केवल जिम्मेदार बनाया बल्कि उन्हें प्रेरित और सक्रिय भी बनाए रखा। इस प्रणाली ने उन्हें यह महसूस कराया कि वे केवल शिक्षा ग्रहण नहीं कर रहे, बल्कि एक सामुदायिक जीवन जीना भी सीख रहे हैं। रवि पाठक (बदला हुआ नाम), जो बैच के वरिष्ठतम छात्र थे, आवासीय ब्रिज कोर्स (आरबीसी) केंद्र के पहले ‘अध्यक्ष’ नियुक्त किए गए थे। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “हमने बहुत सारी शरारतें कीं — जैसे फुटबॉल पंप की मेटल पाइप निकालकर उससे मेन गेट काटकर रात के अंधेरे में चुपचाप भागने की कोशिश करना, या भूत बनकर शिक्षकों को डराना। लेकिन जितना अधिक समय हमने वहाँ बिताया, उतना ही हमें यह समझ में आने लगा कि एक सुरक्षित ठिकाने का क्या महत्व होता है — एक ऐसी जगह जहाँ हमें खाने या किसी ज़रूरत की चिंता नहीं करनी पड़ती थी। हो सकता है कि हम पूरी तरह आज़ाद नहीं थे, लेकिन हम हमेशा सुरक्षित थे। जब मुझे RBC का अध्यक्ष चुना गया, तो मैंने ठान लिया कि अपने साथियों पर सकारात्मक प्रभाव डालूंगा। आज भी मैं शिक्षकों के साथ कुछ इलाकों में जाता हूँ और बच्चों को अपनी कहानी सुनाकर उन्हें प्रेरित करने की कोशिश करता हूँ। मैं उन्हें समझाता हूँ कि शिक्षा ही एकमात्र रास्ता है, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकते हैं और गरीबी के दायरे से बाहर निकल सकते हैं

मस्ती की पाठशाला, जो समान शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा संचालित एक पहल है, की शुरुआत के समय रवि, पार्थ और अविक इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले पहले छात्रों में से थे। पहले बैच के 46 लड़कों को, जो मस्ती की पाठशाला, टिनप्लेट के छात्र थे, 2018 में काशीडीह सीबीएसई बोर्ड के अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में मुख्यधारा में शामिल किया गया था। उन्हें उनकी उम्र के अनुसार विभिन्न कक्षाओं में दाखिला दिया गया। साल 2024 में, इनमें से 8 लड़कों ने बोर्ड परीक्षाओं में हिस्सा लिया, जिनमें से तीन छात्रों ने प्रथम श्रेणी प्राप्त की, जिसमें सबसे अधिक अंक 69 प्रतिशत थे। वहीं तीन बच्चों ने दूसरी श्रेणी प्राप्त की, और सभी ने 55 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल किए

पूरी तरह आज़ाद नहीं थे, लेकिन हम हमेशा सुरक्षित थे। जब मुझे आरबीसी का अध्यक्ष चुना गया, तो मैंने ठान लिया कि अपने साथियों पर सकारात्मक प्रभाव डालूंगा। आज भी मैं शिक्षकों के साथ कुछ इलाकों में जाता हूँ और बच्चों को अपनी कहानी सुनाकर उन्हें प्रेरित करने की कोशिश करता हूँ। मैं उन्हें समझाता हूँ कि शिक्षा ही एकमात्र रास्ता है, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकते हैं और गरीबी के दायरे से बाहर निकल सकते हैं

मस्ती की पाठशाला जो समान शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा संचालित एक पहल है, की शुरुआत के समय रवि, पार्थ और अविक इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले पहले छात्रों में से थे। पहले बैच के 46 लड़कों को, जो मस्ती की पाठशाला, टिनप्लेट के छात्र थे, 2018 में काशीडीह सीबीएसई बोर्ड के अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में मुख्यधारा में शामिल किया गया था। उन्हें उनकी उम्र के अनुसार विभिन्न कक्षाओं में दाखिला दिया गया। साल 2024 में, इनमें से 8 लड़कों ने बोर्ड परीक्षाओं में हिस्सा लिया, जिनमें से तीन छात्रों ने प्रथम श्रेणी प्राप्त की, जिसमें सबसे अधिक अंक 69 प्रतिशत थे। वहीं तीन बच्चों ने दूसरी श्रेणी प्राप्त की, और सभी ने 55 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल किए।

 

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