ज्वलंत मुद्दा बंगला भाषा हम क्यों सीखेंगे ? बंगला भाषी थोड़ा रुकिए और सोचिए- सुनील कुमार दे
वर्तमान समय में केवल झारखंड में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में अंग्रेजी शिक्षा हावी है।फल स्वरूप दिन प्रतिदिन वेसरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूल खुल रहा है साथ ही साथ सरकारी स्कूल बंद होते जा रहा है।झारखंड में बंगला,उड़िया, उर्दू,संथाली,मुंडारी भूमिज आदि स्थानीय भाषा के स्कूल नहीं के बराबर है।प्रायः सभी सरकारी विद्यालय हिंदी मीडियम में परिवर्तित हो गया है।स्कूल में केवल हिंदी और अंग्रेजी की पढ़ाई होती है

ज्वलंत मुद्दा बंगला भाषा हम क्यों सीखेंगे ? बंगला भाषी थोड़ा रुकिए और सोचिए- सुनील कुमार दे
पोटका – वर्तमान समय में केवल झारखंड में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में अंग्रेजी शिक्षा हावी है।फल स्वरूप दिन प्रतिदिन वेसरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूल खुल रहा है साथ ही साथ सरकारी स्कूल बंद होते जा रहा है।झारखंड में बंगला,उड़िया, उर्दू,संथाली,मुंडारी भूमिज आदि स्थानीय भाषा के स्कूल नहीं के बराबर है।प्रायः सभी सरकारी विद्यालय हिंदी मीडियम में परिवर्तित हो गया है।स्कूल में केवल हिंदी और अंग्रेजी की पढ़ाई होती है।सरकारी विद्यालय में सरकार बच्चे को बहुत सारे सुबिधायें दे रही है लेकिन तब पर भी लोग अपने बच्चे को सरकारी विद्यालय में भेजना पसंद नहीं करते हैं क्योंकि लोगों का मानना है सरकारी विद्यालय में शिक्षा व्यवस्था और पढ़ाई की गुणवत्ता ठीक नहीं है इसलिए केरियर बनाने का होड़ में ज्यादातर बच्चे अंग्रेजी शिक्षा की ओर भाग रहे हैं फलस्वरूप बच्चे अपनी मातृभाषा सीखने से बंचित हो रहे हैं।
झारखंड में अन्य स्थानीय भाषा के साथ साथ बंगला भाषा की स्थिति भी काफी दयनीय है।अगर यही स्थिति रही तो एकदिन झारखंड में बंगला भाषा पूरी तरह विलुप्त हो जायेगी इसमें कोई संदेह नहीं।इस जटिल परिस्थिति में अपनी मातृभाषा बंगला को बचाने के लिए बंग समाज को क्या करना चाहिए इसके लिए गहन मंथन की जरूरत है हम लोग अंतिम पीढ़ी हैं जो बंगला जानते हैं।अगर हम चुप बैठे रहेंगे तो बंगला एक दिन स्वत खत्म हो जायेगी और भावी पीढ़ी हमेशा हमे गाली देते रहेंगे।इसलिए अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा करना सरकार के साथ साथ हमारा भी कर्तव्य और दायित्व बनता है।बच्चे को हम क्यों बंगला सीखाएंगे,बंगला सीखने से क्या लाभ है इस पर मैं कुछ बातें रखना चाहता हूं।
1.किसी भी मनुष्य का पहचान होता है उनकी भाषा,संस्कृति और धर्म से।इसलिए अपना अस्तित्व को बचाने के लिए अपनी मातृभाषा बंगला को शिखना चाहिए।बंगाली बनकर रहने के लिए भी बंगला सीखना जरूरी है।
2.मातृभाषा माँ का दूध का समान है जिसका कोई विकल्प नहीं है।मातृभाषा का जगह दूसरा कोई भाषा नहीं ले सकती है।मातृभाषा में अपना भाव और विचार सही ढंग से व्यक्त किया जा सकता है इसलिए भी बंगला सीखना जरूरी है।
3.सरकारी नोकरी में खासकर शिक्षा के क्षेत्र में प्रतियोगिता में बैठने के लिए एक स्थानीय भाषा जानना जरूरी है जो माँ की भाषा है।
4.रामायण,महाभारत,गीता,भागवत,पुराण,कथामृत,लक्षी चरित्र,विभिन्न देव् देवियों की पाचाली पढ़ने के लिए बंगला जानना जरूरी है।यद्यपि अन्य भाषाओं में भी अनेक धर्म ग्रंथ है लेकिन अपनी मातृभाषा में लिखी हुई पुस्तक पढ़ना और समझना आसान होता है।
5.बंगला पंजिका जो हमारा दिन चर्चा का संविधान है उसको पढ़ने के लिए बंगला जानना जरूरी है।
6.बंगला गाना जैसे,,श्यामा संगीत,रामप्रसादी बाउल,पदावली, रामायण,चैतन्य मंगल,मनसा मंगल,शीतला मंगल,रविंद्र,नजरुल गीति आदि सीखने के लिए बंगला जानना अति आवश्यक है।
7.बंगला यात्रा, नाटक,सीरियल आदि में काम करने के लिए भी बंगला जानना जरूरी है।
8.बंगला साहित्य,संस्कृति और महापुरुषों की जीवनी जानने के लिए भी बंगला सीखना जरूरी है।
अभी बच्चे और बच्चे की पिता माता और अभिभावक सोचे बंगला पढ़ना, लिखना और सीखना जरूरी है अथवा नहीं।रुचि अपना अपना,हमलोगों का काम बोलना और सलाह देना।अपना अस्तित्व बचाना केवल आपलोगों के हाथ में है