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हेरिटेज सीरीज : पी. एन. बोस का जे. एन. टाटा को पत्र

पी. एन. बोस का पत्र न केवल इतिहास की दिशा बदलने वाला साबित हुआ  बल्कि इसने भारतीय इस्पात उद्योग की नींव रखी और देश के औद्योगिक भविष्य को आकार दिया

हेरिटेज सीरीज : पी. एन. बोस का जे. एन. टाटा को पत्र

मुंबई – पी. एन. बोस ने अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत भारतीय भूवैज्ञानिक सेवा से की और 1904 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होकर रियासत कालीन राज्य मयूरभंज में प्रधान भूवैज्ञानिक का पद संभाला। उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि मयूरभंज की गोरुमहिसानी पहाड़ियों में लौह अयस्क भंडार की खोज थी

इस ऐतिहासिक खोज के बाद  पी. एन. बोस ने 24 फरवरी 1904 को जे. एन. टाटा को एक महत्वपूर्ण पत्र लिखा जिसमें उन्होंने मयूरभंज में उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क और झरिया में प्रचुर मात्रा में कोयले की उपलब्धता पर प्रकाश डाला। उनकी इस जानकारी ने टाटा समूह की औद्योगिक योजनाओं को नया आयाम दिया और आगे चलकर साकची में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।

1906 तक भारत सरकार ने स्टील प्लांट की स्थापना में आ रही बाधाओं को दूर कर दिया और टाटा समूह को समर्थन देने का आधिकारिक वादा किया सरकार ने एक निश्चित अवधि तक स्टील खरीदने की प्रतिबद्धता जताई और अतिरिक्त सहायता की पेशकश भी की। इसके बाद 26 अगस्त 1907 को कंपनी को औपचारिक रूप से भारत में पंजीकृत किया गया जिसकी प्रारंभिक पूंजी 2,31,75,000 रुपए थी। इसके बाद 1908 में स्टील प्लांट का निर्माण कार्य शुरू हुआ और 16 फरवरी 1912 को उत्पादन आधिकारिक रूप से प्रारंभ हुआ

टाटा परिवार की स्टील उत्पादन के लिए कच्चे माल की खोज मध्य प्रांत के चंदा जिले से शुरू हुई, जहां उन्हें लोहारा में लौह अयस्क और वरौरा में कोयले के भंडार मिले। हालांकि दोनों संसाधन स्टील निर्माण के लिए अनुपयुक्त साबित हुए।

इसी दौरान नागपुर सचिवालय की एक यात्रा के दौरान दोराबजी टाटा का एक अप्रत्याशित अनुभव उनकी खोज को नया मोड़ देने वाला साबित हुआ जब वे कमिश्नर से मिलने का इंतजार कर रहे थे तो उन्होंने पास के एक संग्रहालय का दौरा करने का फैसला किया। वहां  उनकी नजर एक रंगीन भूवैज्ञानिक मानचित्र पर पड़ी, जिसमें धल्ली-राजहरा के समृद्ध लौह अयस्क भंडार दर्शाए गए थे। हालांकि इस क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता का लौह अयस्क मौजूद था लेकिन कोक बनाने योग्य कोयले और जल संसाधनों की अनुपस्थिति के कारण इसे भी स्टील निर्माण के लिए अनुपयुक्त माना गया

पी. एन. बोस का पत्र न केवल इतिहास की दिशा बदलने वाला साबित हुआ  बल्कि इसने भारतीय इस्पात उद्योग की नींव रखी और देश के औद्योगिक भविष्य को आकार दिया

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